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Backपशुपालन में तकनीकी समावेश हेतु करें वैज्ञानिकों से सम्पर्क: प्रो.गहलोत



मरु क्षेत्रीय परिसर ने कोटड़ा गांव में मनाया मगरा भेड़ पर प्रक्षेत्र दिवस


बीकानेर 04.11.2016 । बदलते परिवेश में खेती व पशुपालन के पारंपरिक तरीकों में बदलाव समय की मांग है, अधिक उत्पादन व आमदनी बढाने हेतु वैज्ञानिकों से सम्पर्क साधते हुए इनमें तकनीकी समावेश लाया जाना चाहिए।  ये विचार भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, बीकानेर की ओर से आज कोटड़ा गांव में मगरा भेड़ों की नस्ल सुधार के लिए आयोजित प्रक्षेत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.ए.के.गहलोत, कुलपति, राजुवास,बीकानेर ने कहे। प्रो.गहलोत ने किसानों एवं पशुपालकों को ऐसे अवसरों, मेलों, सरकारी योजनाओं का अधिकाधिक एवं संगठित स्वरूप में लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित करते हुए कहा कि जब पंजाब व हरियाणा के काश्तकार वहां स्थित कृषि एवं पशुपालन विश्वविद्यालयों एवं विभागों आदि में उपलब्ध सुविधाओं यथा- गोबर, दूध, खून, मिट्टी आदि की जांच करवाने व उन्नत बीज प्राप्त कर लाभ कमा रहे हैं तो राजस्थान का किसान भी जागरूक हो, संगठित स्वरूप में आने पर उनकी समस्याओं का निराकरण अधिक शीघ्रता से हो सकेगा।

इस अवसर पर कार्यक्रम अध्यक्ष डा.ए.के.पटेल, प्रभागाध्यक्ष, मरु क्षेत्रीय परिसर, के.भे.ऊ.अ.सं., बीकानेर ने संस्थान द्वारा आयोजित प्रक्षेत्र दिवस के उददेश्य व महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा संस्थान द्वारा मगरा फील्ड नेटवर्क परियोजना के अंतर्गत यह परियोजना बीकानेर के 12 गांवों में कुल 3 केन्द्रों के माध्यम से चलाई जा रही है, पिछले 2-3 सालों से भेडों़ की उन्नत नस्लें प्राप्त कर, इनके ऊन व भार में वृद्धि लाई गई वहीं  संस्थान द्वारा भेड़ों का अच्छा स्वास्थ्य रखते हुए प्रतिवर्ष पंजीकृत भेडों का फड़किया माता, पीपीआर का टिकाकरण एवं आंत परजीवी नियंत्रण हेतु दवा पिलाई जाती है,  जिससे इनकी मृत्यु दर में लगभग 7 प्रतिशत से अधिक कमी लाई गई हैं। कृत्रिम गर्भाधान, मशीन से कताई, संतुलित पशु आहार आदि का भी प्रयोग भेड़ पालकों के रेवड़ में किया जा रहा है, अब तक संस्थान द्वारा दिए गए मेंढ़ों से 1000 से भी अधिक उन्नत नस्ल के मेमने पैदा हुए जिनकी ऊन की गुणवत्ता अच्छी पाई गई हैं। भेड़ पालकों के लिए प्रतिवर्ष 10-15 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर भेड़ पालन से संबंधित अद्यतन तकनीकी जानकारी दी जाती है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर के निदेशक डा .एन.वी.पाटिल ने संस्थान के उल्लेखनीय कार्यों का जिक्र करते हुए भेड़, गाय, बकरी के साथ-साथ ऊँट का वैकल्पिक उपयोग पर अपनी बात रखी तथा कहा कि अब समय आ गया है जब ऊँटों का पारंपरिक उपयोग के साथ-साथ उन्हें दूध उत्पादन की दृष्टि से भी पाले जाने पर जोर दिया। कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि डा.बी.डी.शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने पशुपालन किसानों को फलदार सब्जियों एवं फलों की खेती के लिए बीज प्रमाणिक जगह से ही खरीदने की सलाह दी। काजरी, बीकानेर के डाॅ.एम.एल.सोनी ने कहा कि अधिक घास व चारा लेने के लिए काश्तकार खेत में ही पट्टीदार सिस्टम से फसल व घास प्राप्त कर सकता है। इस अवसर पर सभी संस्थानों ने अपने यहां विकसित प्रौद्योगिकी संबंधी प्रदर्शनी लगाई गई जिनका भेड़ पालकों एवं अतिथियों द्वारा अवलोकन किया गया।

 



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